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देवों के देव महादेव को अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर और शिव में क्या अंतर है 

अज्ञानता के कारण बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं। लेकिन दोनों की मूर्तियां अलग-अलग आकार की हैं।

शिव परमात्मा रचयिता हैं और शंकर उनकी रचना हैं। शिव ब्रम्ह्लोक में परमधाम के वासी हैं और शंकर सूक्ष्मलोक के वासी हैं।

शिवरात्रि शिव की याद में मनाई जाती है, ना की शंकर रात्रि । अत: शिव निराकार ईश्वर हैं और शंकर सूक्ष्म आकार वाले देवता हैं।

भगवान शिव सदैव परोपकारी हैं, जन्म और मृत्यु के चक्र या बंधन से हमेशा मुक्त हैं जबकि शंकर साकार देवता हैं।

शंकर को देव आदि देव महादेव भी कहा जाता है। वह भगवान शिव-शंकर में प्रवेश करके वह महान् कार्य करा देता है, जो अन्य कोई देवता, साधु, सन्त, महात्मा नहीं कर सकता। 

शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है तो कहते है की शिव शंकर भोलेनाथ शंकर जी को ऊँचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताया गया है जबकि भगवान शिव ज्योतिबिंदु हैं। 

दरअसल भगवान शिव के तीन प्रमुख कर्तव्य हैं. नई पावन दैवी सतयुगी दुनिया की स्थापना, दैवी दुनिया की पालना और पुरानी पतित दुनिया का विनाश।

ये तीन कर्तव्य तीन मुख्य देवता ब्रह्मा, विष्णु, शंकर निभाते हैं। इसीलिए शिव की त्रिमूर्ति को भगवान शिव भी कहा जाता है।

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